अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इराक से सैन्य वापसी का अपना वायदा निभाया है। हालांकि अभी इराक में 50,000 अमेरिकी सैनिक रुके रहेंगे, और उनकी संपूर्ण वापसी 2011 के अंत तक ही संभव हो सकेगी। ओबामा और अमेरिकी प्रशासन के इराक मिशन के मूल्यांकन का अपना दृष्टिकोण है, पर हमारे लिए 2003 में अमेरिकी सैनिकों के इराक में प्रवेश एवं करीब साढ़े सात वर्ष बाद वापसी की शुरुआत के समय के इराक की स्थिति के वास्तविक विश्लेषण का यह सबसे उपयुक्त समय है। अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, अब ऑपरेशन इराकी फ्रीडम की जगह ऑपरेशन न्यू डॉन, यानी उषाकाल ने ले ली है। क्या वाकई ऐसा ही है?
ओबामा ने सैनिकों की वापसी संबंधी अपने संबोधन में कहा कि अमेरिका ने इराकियों को अपना भविष्य तय करने का अवसर देने के लिए भारी कीमत चुकाई है। वियतनाम के बाद सर्वाधिक अमेरिकी सैनिक इराक युद्ध में मारे गए एवं हजार से ज्यादा सैनिक अपंगता के शिकार हुए हैं। खरबों डॉलर के खर्च ने अर्थव्यवस्था को हिला दिया, सो अलग।
लेकिन अमेरिका ने जब हमला किया, तब उसे पता था कि इसकी कीमत तो चुकानी होगी। सवाल तो इराक का है कि आखिर उसे क्या मिला? ओबामा ने अपने भाषण में ही कहा कि इराक के लिए अभी युद्ध का अंत नहीं हुआ है, देश हिंसा से ग्रस्त है और राजनीतिक अस्थिरता कायम है। अमेरिकी फौज की वापसी की घोषणा का स्वागत विद्रोहियों ने एक साथ कई जगहों पर विनाशकारी विस्फोट करके किया। उत्तरी बगदाद के एक पुलिस थाने से शुरू हुआ यह विस्फोट शृंखलाबद्ध था, जिसमें मरने वाले ज्यादातर पुलिस के जवान थे। जबकि पिछले कई महीनों से अमेरिका का दावा रहा है कि विद्रोहियों का लगभग सफाया हो चुका है। स्पष्ट है कि विद्रोही अमेरिकी दावे को गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुन्नियों का यह विद्रोह केवल अमेरिका के खिलाफ नहीं है, वे शिया बहुमत वाले शासन को भी सहन करने को तैयार नहीं हैं। मार्च के चुनाव में बहुमतविहीनता के कारण सरकार का गठन नहीं हो पाया है। इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी का यह कहना, कि संप्रभु और स्वतंत्र इराक आज अमेरिका के साथ समानता के धरातल पर खड़ा हो गया है, प्रकारांतर से यह संदेश देना है कि उनके राजनीतिक नेतृत्व में ही अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समझौता हुआ।
वास्तव में यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि हम आज के इराक का मूल्यांकन कैसे करते हैं। हालांकि सद्दाम हुसैन के समय भी बहुसंख्यक शिया आबादी के साथ क्रूरता बरती गई थी। तुर्की मूल के कुर्दों के प्रति उनका अत्याचार भी जग जाहिर था। ईरान के साथ लंबी लड़ाई तथा कुवैत पर हमला कर उन्होंने इराक को भारी संकट में फंसा दिया था। तब इराक दुर्दशा का शिकार हो चुका था और सद्दाम के खिलाफ असंतोष बढ़ा हुआ था। बगदाद पर अमेरिकी सैनिकों के कब्जे के बाद खुशियां मनाने तथा सद्दाम की मूर्ति को गिराकर अपमानित करने वाले भी इराकी ही थे। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 2005 के चुनाव में पहली बार इराकी नागरिकों ने आत्मघाती विद्रोहियों की धमकियों की परवाह न करते हुए भारी संख्या में मतदान में भाग लिया था। वह पिछले 50 वर्षों में इराक का सबसे स्वच्छ चुनाव था।
ऐसे निरंकुश सद्दाम के अंत के बाद वहां लोकतंत्र की स्थापना हुई है। लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ। इराक को सद्दाम की नासमझियों एवं अमेरिकी हमले की ऐसी कीमत चुकानी पड़ी है, जिसकी भरपाई अत्यंत कठिन है। एक आंकड़े के मुताबिक, अगस्त, 2007 तक जंग में 10 लाख से ज्यादा इराकी मारे गए थे। कुछ संस्थाओं ने मरने वालों की संख्या एक से डेढ़ लाख के बीच बताई है। सबसे खराब असर बच्चों पर पड़ा। इराक सरकार ने दिसंबर, 2007 तक करीब 50 लाख बच्चों के अनाथ होने की बात स्वीकारी थी। इस समय 60 से 70 प्रतिशत इराकी बच्चे मनोवैज्ञानिक समस्याआें से ग्रस्त हैं। नवंबर, 2007 में यूनेस्को ने बताया था कि केवल सीरिया में तीन लाख इराकी बच्चों ने शरण ली है। कम से कम 22 लाख लोग इराक के भीतर और 20 लाख से ज्यादा इराक के बाहर विस्थापित हुए हैं। सद्दाम के आलोचक भी आज स्वीकार कर रहे होंगे कि अमेरिकी उपचार मूल बीमारी से ज्यादा भयावह साबित हुआ है।आज तक यह बीमारी से भयावह उपचार हुआ है1 आपका मनोज जैसवाल
ओबामा ने सैनिकों की वापसी संबंधी अपने संबोधन में कहा कि अमेरिका ने इराकियों को अपना भविष्य तय करने का अवसर देने के लिए भारी कीमत चुकाई है। वियतनाम के बाद सर्वाधिक अमेरिकी सैनिक इराक युद्ध में मारे गए एवं हजार से ज्यादा सैनिक अपंगता के शिकार हुए हैं। खरबों डॉलर के खर्च ने अर्थव्यवस्था को हिला दिया, सो अलग।
लेकिन अमेरिका ने जब हमला किया, तब उसे पता था कि इसकी कीमत तो चुकानी होगी। सवाल तो इराक का है कि आखिर उसे क्या मिला? ओबामा ने अपने भाषण में ही कहा कि इराक के लिए अभी युद्ध का अंत नहीं हुआ है, देश हिंसा से ग्रस्त है और राजनीतिक अस्थिरता कायम है। अमेरिकी फौज की वापसी की घोषणा का स्वागत विद्रोहियों ने एक साथ कई जगहों पर विनाशकारी विस्फोट करके किया। उत्तरी बगदाद के एक पुलिस थाने से शुरू हुआ यह विस्फोट शृंखलाबद्ध था, जिसमें मरने वाले ज्यादातर पुलिस के जवान थे। जबकि पिछले कई महीनों से अमेरिका का दावा रहा है कि विद्रोहियों का लगभग सफाया हो चुका है। स्पष्ट है कि विद्रोही अमेरिकी दावे को गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुन्नियों का यह विद्रोह केवल अमेरिका के खिलाफ नहीं है, वे शिया बहुमत वाले शासन को भी सहन करने को तैयार नहीं हैं। मार्च के चुनाव में बहुमतविहीनता के कारण सरकार का गठन नहीं हो पाया है। इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी का यह कहना, कि संप्रभु और स्वतंत्र इराक आज अमेरिका के साथ समानता के धरातल पर खड़ा हो गया है, प्रकारांतर से यह संदेश देना है कि उनके राजनीतिक नेतृत्व में ही अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समझौता हुआ।
वास्तव में यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि हम आज के इराक का मूल्यांकन कैसे करते हैं। हालांकि सद्दाम हुसैन के समय भी बहुसंख्यक शिया आबादी के साथ क्रूरता बरती गई थी। तुर्की मूल के कुर्दों के प्रति उनका अत्याचार भी जग जाहिर था। ईरान के साथ लंबी लड़ाई तथा कुवैत पर हमला कर उन्होंने इराक को भारी संकट में फंसा दिया था। तब इराक दुर्दशा का शिकार हो चुका था और सद्दाम के खिलाफ असंतोष बढ़ा हुआ था। बगदाद पर अमेरिकी सैनिकों के कब्जे के बाद खुशियां मनाने तथा सद्दाम की मूर्ति को गिराकर अपमानित करने वाले भी इराकी ही थे। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 2005 के चुनाव में पहली बार इराकी नागरिकों ने आत्मघाती विद्रोहियों की धमकियों की परवाह न करते हुए भारी संख्या में मतदान में भाग लिया था। वह पिछले 50 वर्षों में इराक का सबसे स्वच्छ चुनाव था।
ऐसे निरंकुश सद्दाम के अंत के बाद वहां लोकतंत्र की स्थापना हुई है। लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ। इराक को सद्दाम की नासमझियों एवं अमेरिकी हमले की ऐसी कीमत चुकानी पड़ी है, जिसकी भरपाई अत्यंत कठिन है। एक आंकड़े के मुताबिक, अगस्त, 2007 तक जंग में 10 लाख से ज्यादा इराकी मारे गए थे। कुछ संस्थाओं ने मरने वालों की संख्या एक से डेढ़ लाख के बीच बताई है। सबसे खराब असर बच्चों पर पड़ा। इराक सरकार ने दिसंबर, 2007 तक करीब 50 लाख बच्चों के अनाथ होने की बात स्वीकारी थी। इस समय 60 से 70 प्रतिशत इराकी बच्चे मनोवैज्ञानिक समस्याआें से ग्रस्त हैं। नवंबर, 2007 में यूनेस्को ने बताया था कि केवल सीरिया में तीन लाख इराकी बच्चों ने शरण ली है। कम से कम 22 लाख लोग इराक के भीतर और 20 लाख से ज्यादा इराक के बाहर विस्थापित हुए हैं। सद्दाम के आलोचक भी आज स्वीकार कर रहे होंगे कि अमेरिकी उपचार मूल बीमारी से ज्यादा भयावह साबित हुआ है।आज तक यह बीमारी से भयावह उपचार हुआ है1 आपका मनोज जैसवाल
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