मनोज जैसवाल :कानपुर के निकट कालका एक्सप्रेस हादसे में 80 लोगों की जान चली गई, जबकि 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। लेकिन अपने तरह की यह पहली घटना नहीं है। रेल मंत्रालय रामभरोसे चल रहा है और यह तब से हो रहा है जब ममता बनर्जी ने रेल मंत्रालय की कमान संभाली थी। इसके बाद पिछले दो साल के भीतर रेल मंत्रालय हादसों का मंत्रालय बन गया है।
साल 2009 में ममता बनर्जी के बतौर रेलवे मंत्री शपथ लेने के बाद से दो दर्जन से ज्यादा बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। कभी दो ट्रेनों के आपस में टकरा जाने से, कभी अचानक ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर जाने की वजह से, तो कभी क्रॉसिंग पर वॉचमैन न होने के कारण करीब 400 बेकसूर लोग अपनी जान गवां चुके हैं।
सवाल है कि आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? सीधे तौर पर यह पूरा दारोमदार था तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी के कंधों पर। जब एक के बाद एक रेल हादसे हो रहे थे, बेकसूर लोग एक झटके में अपनी जान से हाथ धोने को मजबूर थे, रेल का सफर लोगों के लिए किसी मौत के सफर से कम नहीं था, ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करने में जुटी थीं। इसके लिए उन्होंने रेल मंत्रालय के कामकाज, उसकी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। बंगाल में चुनाव जीतने के बाद ममता ने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन रेलवे के हालात वैसे ही बदतर बने हुए हैं।
हर पार्टी को लगता है कि रेल मंत्रालय लेकर वह अपने वोट बैंक को ज्यादा खुश रख सकती है। यही कारण है कि ममता बनर्जी हर हाल में यह पद अपनी पार्टी के पास ही रखना चाहती हैं, लेकिन वे अपनी पार्टी में किसी को अपने बराबर की कुर्सी भी नहीं देना चाहतीं। यही वजह है कि ममता ने किसी को अपनी जगह रेलवेमंत्री नहीं बनने दिया और प्रधानमंत्री ने एक बार फिर ‘गठबंधन की मजबूरी’ में मुकुल रॉय को रेल राज्यमंत्री बनाकर मंत्रालय उसे सीधे तौर पर अपनी छत्रछाया में ले लिया। ऐसे में पिछले दो सालों में हुई दुर्गति के बाद रेलवे जस की तस हालत में राम भरोसे काम कर रहा है। सीधे तौर पर किसी एक मंत्री की जिम्मेदारी न होने से रेलवे का कोई माई-बाप नहीं है।.
उधर, फतेहपुर जिले में रविवार दोपहर हुए देश के एक सबसे बड़े रेल हादसे में बचाव कार्य पूरा होने के बाद मरने वालों की संख्या बढ़कर 80 हो गई है। इस हादसे में करीब 250 लोग घायल हुए हैं। दुर्घटना के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
रेलवे प्रशासन, रेल पटरी को दुरुस्त करने में लगा हुआ है, जहां यातायात पूरी तरह से ठप्प है। दुर्घटना रविवार अपराह्न् 12.20 बजे फतेहपुर जिले के मलवा स्टेशन के पास घटी थी। हावड़ा से हरियाणा के कालका जा रही कालका एक्सप्रेस गाड़ी के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए थे।
राहत एवं बचाव अभियान कर्नल ए.डी.एस. ढिल्लन की अंतिम स्वीकृति पर बंद हुआ। कर्नल ढिल्लन इलाहाबाद से आई सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल का एक विशेष दल सेना की मदद कर रहा था।
दुर्घटना में मारे गए दो स्वीडिश नागरिकों की पहचान विक्टर और विक के रूप में हुई है। दोनों द्वितीय श्रेणी के एक आरक्षित डिब्बे में सफर कर रहे थे, जो बूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। उनका स्वीडिश साथी आस्कर हालांकि जीवित बच गया गया है और उसे कानपुर में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसे कई जगह चोटें आई हैं।
स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि 100 से अधिक घायलों को फतेहपुर और लखनऊ के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जबकि बाकी को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई।
फतेहपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के.एन. जोशी ने कहा कि लगभग 150 लोगों को भर्ती कराया गया। उनमें से कई के अंग कट गए हैं और कई को अन्य तरह की चोटें हैं।
स्थानीय ग्रामीण सबसे पहले बचाव के लिए दुर्घटना स्थल पर पहुंचे। कई यात्रियों ने शिकायत की कि राहत कार्य बहुत देर से शुरू हुआ और उन्हें मदद के लिए कम से कम दो घंटे तक इंतजार करना पड़ा।
एक वरिष्ठ रेल अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि रेलगाड़ी 108 किलोमीटर प्रति घंटा के रफ्तार से चल रही थी। उसी दौरान चालक ने आपातकालीन ब्रेक लगा दी और बोगियां पटरी से उतर गईं।
सेना के कोई 180 जवानों ने रातभर मेहनत कर शवों को बोगियों से बाहर निकाला। सेना के हेलीकॉप्टरों ने गम्भीर रूप से घायलों को लखनऊ और इलाहाबाद के अस्पतालों में पहुंचाया।
इसके पहले उत्तर मध्य रेलवे (इलाहाबाद मुख्यालय) के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी (सीपीआरओ) संदीप माथुर ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि घायलों की सूची बनाने का काम जारी है। जल्द ही भारतीय रेलवे की वेबसाइट पर सभी घायलों के नाम जारी कर दिए जाएंगे।
अधिकारियों के मुताबिक राहत एवं बचाव अभियान में खोजी कुत्तों को भी लगया गया था, ताकि रेलगाड़ी के मलबे में दबे किसी शव का पता लगाया जा सके।
इस रेल हादसे को इस वर्ष का देश का सबसे बड़ा रेल हादसा बताया जा रहा है। भारतीय रेल दुनिया का एक सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो दिन भर में लगभग 1.40 करोड़ यात्रियों को ढोता है।
ख़ैर ये बात तो सारा देश जानता है कि ममता बनर्जी का ध्यान रेलवे मंत्रालय पर कम और पश्चिम बंगाल पर ज़्यादा रहा है.
ऐसी बातें ही प्रणाली में आड़े आती हैं. विभाग में ज़्यादातर पद ख़ाली पड़े हैं और उसके लिए मंत्रालय ही ज़िम्मेदार है. मेरे हिसाब से ये बिलकुल ठीक नहीं है.
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साल 2009 में ममता बनर्जी के बतौर रेलवे मंत्री शपथ लेने के बाद से दो दर्जन से ज्यादा बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। कभी दो ट्रेनों के आपस में टकरा जाने से, कभी अचानक ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर जाने की वजह से, तो कभी क्रॉसिंग पर वॉचमैन न होने के कारण करीब 400 बेकसूर लोग अपनी जान गवां चुके हैं।
सवाल है कि आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? सीधे तौर पर यह पूरा दारोमदार था तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी के कंधों पर। जब एक के बाद एक रेल हादसे हो रहे थे, बेकसूर लोग एक झटके में अपनी जान से हाथ धोने को मजबूर थे, रेल का सफर लोगों के लिए किसी मौत के सफर से कम नहीं था, ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करने में जुटी थीं। इसके लिए उन्होंने रेल मंत्रालय के कामकाज, उसकी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। बंगाल में चुनाव जीतने के बाद ममता ने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन रेलवे के हालात वैसे ही बदतर बने हुए हैं।
हर पार्टी को लगता है कि रेल मंत्रालय लेकर वह अपने वोट बैंक को ज्यादा खुश रख सकती है। यही कारण है कि ममता बनर्जी हर हाल में यह पद अपनी पार्टी के पास ही रखना चाहती हैं, लेकिन वे अपनी पार्टी में किसी को अपने बराबर की कुर्सी भी नहीं देना चाहतीं। यही वजह है कि ममता ने किसी को अपनी जगह रेलवेमंत्री नहीं बनने दिया और प्रधानमंत्री ने एक बार फिर ‘गठबंधन की मजबूरी’ में मुकुल रॉय को रेल राज्यमंत्री बनाकर मंत्रालय उसे सीधे तौर पर अपनी छत्रछाया में ले लिया। ऐसे में पिछले दो सालों में हुई दुर्गति के बाद रेलवे जस की तस हालत में राम भरोसे काम कर रहा है। सीधे तौर पर किसी एक मंत्री की जिम्मेदारी न होने से रेलवे का कोई माई-बाप नहीं है।.
उधर, फतेहपुर जिले में रविवार दोपहर हुए देश के एक सबसे बड़े रेल हादसे में बचाव कार्य पूरा होने के बाद मरने वालों की संख्या बढ़कर 80 हो गई है। इस हादसे में करीब 250 लोग घायल हुए हैं। दुर्घटना के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
रेलवे प्रशासन, रेल पटरी को दुरुस्त करने में लगा हुआ है, जहां यातायात पूरी तरह से ठप्प है। दुर्घटना रविवार अपराह्न् 12.20 बजे फतेहपुर जिले के मलवा स्टेशन के पास घटी थी। हावड़ा से हरियाणा के कालका जा रही कालका एक्सप्रेस गाड़ी के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए थे।
राहत एवं बचाव अभियान कर्नल ए.डी.एस. ढिल्लन की अंतिम स्वीकृति पर बंद हुआ। कर्नल ढिल्लन इलाहाबाद से आई सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल का एक विशेष दल सेना की मदद कर रहा था।
दुर्घटना में मारे गए दो स्वीडिश नागरिकों की पहचान विक्टर और विक के रूप में हुई है। दोनों द्वितीय श्रेणी के एक आरक्षित डिब्बे में सफर कर रहे थे, जो बूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। उनका स्वीडिश साथी आस्कर हालांकि जीवित बच गया गया है और उसे कानपुर में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसे कई जगह चोटें आई हैं।
स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि 100 से अधिक घायलों को फतेहपुर और लखनऊ के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जबकि बाकी को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई।
फतेहपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के.एन. जोशी ने कहा कि लगभग 150 लोगों को भर्ती कराया गया। उनमें से कई के अंग कट गए हैं और कई को अन्य तरह की चोटें हैं।
स्थानीय ग्रामीण सबसे पहले बचाव के लिए दुर्घटना स्थल पर पहुंचे। कई यात्रियों ने शिकायत की कि राहत कार्य बहुत देर से शुरू हुआ और उन्हें मदद के लिए कम से कम दो घंटे तक इंतजार करना पड़ा।
एक वरिष्ठ रेल अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि रेलगाड़ी 108 किलोमीटर प्रति घंटा के रफ्तार से चल रही थी। उसी दौरान चालक ने आपातकालीन ब्रेक लगा दी और बोगियां पटरी से उतर गईं।
सेना के कोई 180 जवानों ने रातभर मेहनत कर शवों को बोगियों से बाहर निकाला। सेना के हेलीकॉप्टरों ने गम्भीर रूप से घायलों को लखनऊ और इलाहाबाद के अस्पतालों में पहुंचाया।
इसके पहले उत्तर मध्य रेलवे (इलाहाबाद मुख्यालय) के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी (सीपीआरओ) संदीप माथुर ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि घायलों की सूची बनाने का काम जारी है। जल्द ही भारतीय रेलवे की वेबसाइट पर सभी घायलों के नाम जारी कर दिए जाएंगे।
अधिकारियों के मुताबिक राहत एवं बचाव अभियान में खोजी कुत्तों को भी लगया गया था, ताकि रेलगाड़ी के मलबे में दबे किसी शव का पता लगाया जा सके।
इस रेल हादसे को इस वर्ष का देश का सबसे बड़ा रेल हादसा बताया जा रहा है। भारतीय रेल दुनिया का एक सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो दिन भर में लगभग 1.40 करोड़ यात्रियों को ढोता है।
ख़ैर ये बात तो सारा देश जानता है कि ममता बनर्जी का ध्यान रेलवे मंत्रालय पर कम और पश्चिम बंगाल पर ज़्यादा रहा है.
ऐसी बातें ही प्रणाली में आड़े आती हैं. विभाग में ज़्यादातर पद ख़ाली पड़े हैं और उसके लिए मंत्रालय ही ज़िम्मेदार है. मेरे हिसाब से ये बिलकुल ठीक नहीं है.
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होता ये है कि रेलवे विभाग ट्रेन सेवाएं तो बढ़ा देते हैं, लेकिन उसके कारण सुरक्षा का मुद्दा भी प्रभावित होता है. राजनीतिज्ञों और प्रबंधकों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे सिस्टम को एक तय सीमा के पार न खींचा जाए. रेलवे सेवाएं और सुरक्षा प्रदान करने के बीच एक संतुलन बनाए जाने की ज़रूरत है.
ReplyDeleteTrain services to the Railway Department that would increase, but the safety issue is also affected. Politicians and managers must ensure that the railway system that do not exceed a certain limit to be drawn. Railways to maintain a balance between providing services and security needs.
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