सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन
क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।
कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।
एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।
खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।
देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।
डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।
दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।
नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।
कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।
- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।
बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।
सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं। इस प्रकार भी
सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।
इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।
यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।
टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।
इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।
इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।
नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।
विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।
बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:
- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।
- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।
- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।
- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।
- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती है। मनोज जैसवाल
लेख आपका मजेदार है
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