
सारे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में जिस तरह जनता उठ खड़ी हुई है, उससे यह साफ है कि भ्रष्टाचार जनता को सबसे ज्यादा सताने वाला मुद्दा है। पहले भी जब कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन हुआ है, तो लोगों का उसको व्यापक समर्थन मिला है। ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार सिर्फ मध्यवर्ग या उच्च जातियों का मामला है, बल्कि रसूख या जान-पहचान की वजह से वे लोग तो कभी-कभार भ्रष्टाचार से बच भी जाते हैं, लेकिन गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को तो कदम-कदम पर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। आम जनता को जिस भ्रष्टाचार से रोज-रोज रूबरू होना पड़ता है, वह कोई अंतरराष्ट्रीय सौदों में करोड़ों, अरबों का भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि नौकरशाही के स्तर पर, बल्कि छोटे स्तर की नौकरशाही से स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार है। इसकी मुख्य वजह यह है कि हमारी नौकरशाही का पूरा ढांचा और मिजाज औपनिवेशिक काल का है, जब देश में विदेशी हुकूमत थी। उस वक्त सरकार का काम भारतीय जनता पर राज करना था और उसकी इस जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी। आजादी के 64 वर्षो बाद भी नौकरशाही का चरित्र नहीं बदला है और यही वजह है भ्रष्टाचार के पनपने की। हमारे यहां तमाम नियम-कानून हैं, जो सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हैं, लेकिन सरकारी सेवाओं पर जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी कानून नहीं हैं। यह धारणा जब तक सरकारी सेवाओं में नहीं बनेगी कि सरकार का काम राज करना नहीं, जनता की सेवा करना है, तब तक सरकारी सेवाओं में संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार बना रहेगा। अभी बहुत आगे जाना है, लेकिन हम आगे तो बढ़ ही रहे हैं।
बेहद शानदार आलेख
ReplyDeleteसुन्दर आलेख
ReplyDeletevery nice
ReplyDeletevery very good & nice
ReplyDeleteशानदार आलेख थैंक्स मनोज जी
ReplyDeleteसुन्दर आलेख
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