मनोज जैसवाल : सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा
नमस्कार।आज की पोस्ट पर आइये जानते हैं,इंटरनेट पर सबसे बड़े हमले का सच,इससे पहले यह जानना ज़रुरी है कि इसकी शुरुआत कहाँ कैसे हुई। नीदरलैंड में 1955 में बनाए गए नाटो के बंकर को दुनिया के रक्षा विशेषज्ञ भले ही भुला चुके हों, लेकिन यह इन दिनों फिर चर्चा में है। यह बंकर शीत युद्ध के दौरान परमाणु हमले से बचाव के लिए बनाया गया था। शीत युद्ध खत्म हुआ, तो इसकी जरूरत खत्म हो गई और फिर 1996 में इसे नीलाम कर दिया गया। इसी बंकर में पुर्तगाली कंपनी साइबरबंकर ने अपने सर्वर लगाए हैं। इन सर्वर में कोई भी मामूली-सी फीस देकर हार्ड-डिस्क स्पेस खरीद सकता है। इसके सर्वर पर दुनिया भर की तरह-तरह की वेबसाइटें चल रही हैं। ऐसी गतिविधियों वाली वेबसाइटें भी, जिन्हें दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में गैर-कानूनी माना जाता है।
साइबरबंकर को इन सबसे कोई आपत्ति नहीं। कंपनी का कहना है कि उसके सर्वर पर बाल-पोर्नोग्राफी और आतंकवाद के अलावा किसी भी तरह की सामग्री डाली जा सकती है। इस पर सब कुछ बुरा ही होता हो, ऐसा नहीं है। विकीलीक्स के खुलासों से परेशान अमेरिकी सरकार जब उसके पीछे पड़ गई, तो विकीलीक्स ने साइबरबंकर की ही शरण ली। आज भी विकीलीक्स वहीं से चल रहा है। साइबरबंकर यह सारा काम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज द्वारा परित्यक्त समूहों और गतिविधियों को मंच देने के नाम पर करती है। 23 मार्च को इंटरनेट पर जो अब तक का सबसे बड़ा साइबर हमला हुआ, उसके लिए भी इसी साइबरबंकर का इस्तेमाल किया गया। यह हमला उस कंपनी के सर्वर को जाम करने के लिए किया गया था, जो अवांछित ई-मेल से निजात दिलाने का काम करती है। जाहिर है कि इस हमले का मकसद व्यावसायिक था, यह उन कंपनियों का कारनामा था, जो अवांछित ई-मेल भेजने का काम करती हैं।इंटरनेट की सेवाओं पर होने वाला यह पहला हमला हो, ऐसा नहीं है। इस साल के शुरू में ऐसे कई छोटे-बड़े हमले हुए। ऐसे ही एक हमले का शिकार भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज भी बने थे। इन हमलों में ज्यादातर मामले क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी के थे। जब इन हमलों की जांच हुई, तो पता चला कि ये हमले चीन से हुए थे। यह तो पता नहीं कि इन हमलों के पीछे चीन सरकार का कोई हाथ था या नहीं, लेकिन इन हमलों ने एक संदेश तो पूरी दुनिया मे फैला ही दिया कि उच्च स्तरीय कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में चीन अब किसी से पीछे नहीं है। अभी तक इस क्षेत्र में चीन, भारत से काफी पीछे था। पिछले साल के अंत में भारत समेत दुनिया भर के लाखों कंप्यूटरों में स्टक्सनेट वार्म का संक्रमण पाया गया। जांच में पता चला कि स्टक्सनेट को बाकायदा अमेरिकी सरकार ने तैयार करवाया था, जिसका मकसद था, ईरान के परमाणु कार्यक्रम की खुफिया जानकारी भेजना और इराकी परमाणु कार्यक्रम के सर्वर पर नियंत्रण हासिल करना। ईरान में इस वायरस ने क्या कमाल किया, यह तो नहीं पता चला, लेकिन बाकी दुनिया के कंप्यूटरों और सर्वरों को इससे छुटकारा पाने के लिए काफी पसीना और पैसा बहाना पड़ा। यानी इस तरह के हमले व्यावसायिक हित के लिए भी हो सकते हैं, धोखाधड़ी के लिए भी और राजनीतिक व सामरिक मकसद के लिए भी। यह भी हो सकता है कि इंटरनेट जैसे-जैसे व्यापक हो, इसके नए रूप भी हमारे सामने आएं।कई विशेषज्ञों ने ऐसे परिदृश्य की भी परिकल्पना की है, जिसमें किसी देश में अराजकता फैलाने या यहां तक कि तख्ता पलट के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन क्या इन साइबर हमलों से बचने का कोई रास्ता है? विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरी तरह नहीं। इससे बचने के उनके पास दो ही सुझाव हैं- एक तो हमेशा सतर्क रहें और दूसरे, सुरक्षा के लिए बने सॉफ्टवेयर आदि का इस्तेमाल करें। लेकिन क्या इसमें भी पूर्ण सुरक्षा की गारंटी है? पिछले कुछ साल में साइबर सुरक्षा की सेवाओं ने एक बहुत बड़े कारोबार का रूप ले लिया है। आपके घर के कंप्यूटर के एंटी वायरस से लेकर बड़े-बड़े सर्वरों की फॉयरवॉल तक आजकल सब कुछ हाथों-हाथ बिक रहा है। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे दिल्ली, मुंबई जैसे कानून व्यवस्था की खराब स्थिति का फायदा अगर किसी को हुआ है, तो सुरक्षा मुहैया कराने वाली सिक्योरिटी एजेंसियों को। मजाक में यह भी कहा जाता है कि दिल्ली में साल भर में सारे चोर मिलकर जितने धन की चोरी कर सकते थे, उनसे सुरक्षा मुहैया कराने वाली सिक्योरिटी एजेंसियां उससे कहीं ज्यादा रकम कमा लेती हैं। दिक्कत यह है कि सुरक्षा के लिए इतना धन खर्च करने के बावजूद इन शहरों के लोगों में सुरक्षित होने का भाव नहीं बढ़ा है।लगभग यही हाल साइबर सुरक्षा का भी है। आप सुरक्षा की कितनी भी कड़ी व्यवस्था कर लें, कुशल चोरों की तरह ही साइबर हमला करने वाले कुछ ही समय में हर सुरक्षा कवच, हर चक्रव्यूह को तोड़ने का तरीका निकाल ही लेते हैं। और जो कुछ हो रहा है, उसके लिए आप इंटरनेट को कोई दोष नहीं दे सकते। दुनिया में अगर धोखाधड़ी है, राजनीतिक व कूटनीतिक रंजिशें हैं, व्यावसायिक टकराव हैं, तो वे इंटरनेट पर दिखेंगे ही। इंटरनेट भी आखिर दुनिया की अच्छाइयों और बुराइयों से बना इसी का एक प्रतिरूप है। इंटरनेट में हर काम काफी तेजी से होता है और बहुत बड़े पैमाने पर होता है इसलिए इसका असर भी व्यापक होता है और इस पर हो-हल्ला भी खूब मचता है।लगातार बढ़ रहे इन साइबर हमलों में हमारे लिए क्या संदेश है? पिछले कुछ समय से हम अपनी बहुत सारी समस्याओं का हल तकनीक में खोज रहे है।
इंटरनेट पर सबसे बड़े हमले का सच
लंदन और जिनेवा की स्पैमहॉस और पुर्तगाली कंपनी साइबर बंकर के बीच का मामला है।स्पैमहॉस बिना लाभ अर्जित किए काम करने वाली एक कंपनी है जो इंटरनेट पर अनचाही सामग्रियों यानी स्पैम को रोकने में मदद करती है। ये कंपनी डोमेन नेम सर्विस (डीएनएस) चलाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक है।स्पैमहॉस ने पिछले दिनों पुर्तगाली कंपनी साइबर बंकर की कुछ सेवाओं को रोक दिया था क्योंकि उसे शक था कि ये कंपनी बच्चों के यौन शोषण और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली वेबसाइटों को होस्ट कर रही है।इसके बाद साइबर बंकर ने वो हमला किया जिसे इंटरनेट की भाषा में डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ़ सर्विसेस (डीडीओएस) कहा जाता है।इसमें किसी भी नेटवर्क पर इतनी सामग्री तेज़ गति से डाल दी जाती है कि लगने लगता है कि इंटरनेट काम ही नहीं कर रहा है। यानी सड़क पर ट्रैफिक जाम करने जैसा।
कहा जाता है कि गुरुवार को कंपनी ने 300 जीबीपीएस की स्पीड से डेटा भेजना शुरू कर दिया था।
ये यक़ीनन अभी तक की सबसे ज़्यादा गति थी क्योंकि इससे पहले 100 जीबीपीएस की रफ़्तार से ही हमला किया गया था।
क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!
नमस्कार।आज की पोस्ट पर आइये जानते हैं,इंटरनेट पर सबसे बड़े हमले का सच,इससे पहले यह जानना ज़रुरी है कि इसकी शुरुआत कहाँ कैसे हुई। नीदरलैंड में 1955 में बनाए गए नाटो के बंकर को दुनिया के रक्षा विशेषज्ञ भले ही भुला चुके हों, लेकिन यह इन दिनों फिर चर्चा में है। यह बंकर शीत युद्ध के दौरान परमाणु हमले से बचाव के लिए बनाया गया था। शीत युद्ध खत्म हुआ, तो इसकी जरूरत खत्म हो गई और फिर 1996 में इसे नीलाम कर दिया गया। इसी बंकर में पुर्तगाली कंपनी साइबरबंकर ने अपने सर्वर लगाए हैं। इन सर्वर में कोई भी मामूली-सी फीस देकर हार्ड-डिस्क स्पेस खरीद सकता है। इसके सर्वर पर दुनिया भर की तरह-तरह की वेबसाइटें चल रही हैं। ऐसी गतिविधियों वाली वेबसाइटें भी, जिन्हें दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में गैर-कानूनी माना जाता है।
साइबरबंकर को इन सबसे कोई आपत्ति नहीं। कंपनी का कहना है कि उसके सर्वर पर बाल-पोर्नोग्राफी और आतंकवाद के अलावा किसी भी तरह की सामग्री डाली जा सकती है। इस पर सब कुछ बुरा ही होता हो, ऐसा नहीं है। विकीलीक्स के खुलासों से परेशान अमेरिकी सरकार जब उसके पीछे पड़ गई, तो विकीलीक्स ने साइबरबंकर की ही शरण ली। आज भी विकीलीक्स वहीं से चल रहा है। साइबरबंकर यह सारा काम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज द्वारा परित्यक्त समूहों और गतिविधियों को मंच देने के नाम पर करती है। 23 मार्च को इंटरनेट पर जो अब तक का सबसे बड़ा साइबर हमला हुआ, उसके लिए भी इसी साइबरबंकर का इस्तेमाल किया गया। यह हमला उस कंपनी के सर्वर को जाम करने के लिए किया गया था, जो अवांछित ई-मेल से निजात दिलाने का काम करती है। जाहिर है कि इस हमले का मकसद व्यावसायिक था, यह उन कंपनियों का कारनामा था, जो अवांछित ई-मेल भेजने का काम करती हैं।इंटरनेट की सेवाओं पर होने वाला यह पहला हमला हो, ऐसा नहीं है। इस साल के शुरू में ऐसे कई छोटे-बड़े हमले हुए। ऐसे ही एक हमले का शिकार भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज भी बने थे। इन हमलों में ज्यादातर मामले क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी के थे। जब इन हमलों की जांच हुई, तो पता चला कि ये हमले चीन से हुए थे। यह तो पता नहीं कि इन हमलों के पीछे चीन सरकार का कोई हाथ था या नहीं, लेकिन इन हमलों ने एक संदेश तो पूरी दुनिया मे फैला ही दिया कि उच्च स्तरीय कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में चीन अब किसी से पीछे नहीं है। अभी तक इस क्षेत्र में चीन, भारत से काफी पीछे था। पिछले साल के अंत में भारत समेत दुनिया भर के लाखों कंप्यूटरों में स्टक्सनेट वार्म का संक्रमण पाया गया। जांच में पता चला कि स्टक्सनेट को बाकायदा अमेरिकी सरकार ने तैयार करवाया था, जिसका मकसद था, ईरान के परमाणु कार्यक्रम की खुफिया जानकारी भेजना और इराकी परमाणु कार्यक्रम के सर्वर पर नियंत्रण हासिल करना। ईरान में इस वायरस ने क्या कमाल किया, यह तो नहीं पता चला, लेकिन बाकी दुनिया के कंप्यूटरों और सर्वरों को इससे छुटकारा पाने के लिए काफी पसीना और पैसा बहाना पड़ा। यानी इस तरह के हमले व्यावसायिक हित के लिए भी हो सकते हैं, धोखाधड़ी के लिए भी और राजनीतिक व सामरिक मकसद के लिए भी। यह भी हो सकता है कि इंटरनेट जैसे-जैसे व्यापक हो, इसके नए रूप भी हमारे सामने आएं।कई विशेषज्ञों ने ऐसे परिदृश्य की भी परिकल्पना की है, जिसमें किसी देश में अराजकता फैलाने या यहां तक कि तख्ता पलट के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन क्या इन साइबर हमलों से बचने का कोई रास्ता है? विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरी तरह नहीं। इससे बचने के उनके पास दो ही सुझाव हैं- एक तो हमेशा सतर्क रहें और दूसरे, सुरक्षा के लिए बने सॉफ्टवेयर आदि का इस्तेमाल करें। लेकिन क्या इसमें भी पूर्ण सुरक्षा की गारंटी है? पिछले कुछ साल में साइबर सुरक्षा की सेवाओं ने एक बहुत बड़े कारोबार का रूप ले लिया है। आपके घर के कंप्यूटर के एंटी वायरस से लेकर बड़े-बड़े सर्वरों की फॉयरवॉल तक आजकल सब कुछ हाथों-हाथ बिक रहा है। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे दिल्ली, मुंबई जैसे कानून व्यवस्था की खराब स्थिति का फायदा अगर किसी को हुआ है, तो सुरक्षा मुहैया कराने वाली सिक्योरिटी एजेंसियों को। मजाक में यह भी कहा जाता है कि दिल्ली में साल भर में सारे चोर मिलकर जितने धन की चोरी कर सकते थे, उनसे सुरक्षा मुहैया कराने वाली सिक्योरिटी एजेंसियां उससे कहीं ज्यादा रकम कमा लेती हैं। दिक्कत यह है कि सुरक्षा के लिए इतना धन खर्च करने के बावजूद इन शहरों के लोगों में सुरक्षित होने का भाव नहीं बढ़ा है।लगभग यही हाल साइबर सुरक्षा का भी है। आप सुरक्षा की कितनी भी कड़ी व्यवस्था कर लें, कुशल चोरों की तरह ही साइबर हमला करने वाले कुछ ही समय में हर सुरक्षा कवच, हर चक्रव्यूह को तोड़ने का तरीका निकाल ही लेते हैं। और जो कुछ हो रहा है, उसके लिए आप इंटरनेट को कोई दोष नहीं दे सकते। दुनिया में अगर धोखाधड़ी है, राजनीतिक व कूटनीतिक रंजिशें हैं, व्यावसायिक टकराव हैं, तो वे इंटरनेट पर दिखेंगे ही। इंटरनेट भी आखिर दुनिया की अच्छाइयों और बुराइयों से बना इसी का एक प्रतिरूप है। इंटरनेट में हर काम काफी तेजी से होता है और बहुत बड़े पैमाने पर होता है इसलिए इसका असर भी व्यापक होता है और इस पर हो-हल्ला भी खूब मचता है।लगातार बढ़ रहे इन साइबर हमलों में हमारे लिए क्या संदेश है? पिछले कुछ समय से हम अपनी बहुत सारी समस्याओं का हल तकनीक में खोज रहे है।
इंटरनेट पर सबसे बड़े हमले का सच
लंदन और जिनेवा की स्पैमहॉस और पुर्तगाली कंपनी साइबर बंकर के बीच का मामला है।स्पैमहॉस बिना लाभ अर्जित किए काम करने वाली एक कंपनी है जो इंटरनेट पर अनचाही सामग्रियों यानी स्पैम को रोकने में मदद करती है। ये कंपनी डोमेन नेम सर्विस (डीएनएस) चलाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक है।स्पैमहॉस ने पिछले दिनों पुर्तगाली कंपनी साइबर बंकर की कुछ सेवाओं को रोक दिया था क्योंकि उसे शक था कि ये कंपनी बच्चों के यौन शोषण और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली वेबसाइटों को होस्ट कर रही है।इसके बाद साइबर बंकर ने वो हमला किया जिसे इंटरनेट की भाषा में डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ़ सर्विसेस (डीडीओएस) कहा जाता है।इसमें किसी भी नेटवर्क पर इतनी सामग्री तेज़ गति से डाल दी जाती है कि लगने लगता है कि इंटरनेट काम ही नहीं कर रहा है। यानी सड़क पर ट्रैफिक जाम करने जैसा।
कहा जाता है कि गुरुवार को कंपनी ने 300 जीबीपीएस की स्पीड से डेटा भेजना शुरू कर दिया था।
ये यक़ीनन अभी तक की सबसे ज़्यादा गति थी क्योंकि इससे पहले 100 जीबीपीएस की रफ़्तार से ही हमला किया गया था।
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आज आपने रोचक व् ज्ञानवर्धक जानकारी दी मनोज जी शुक्रया
ReplyDeleteमोहित जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteरोचक जानकारी मनोज जी धन्यवाद.
ReplyDeleteChintu Raj जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
DeleteNice Informtion Sir Thanks.
ReplyDeleteShivangi sexena जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteसुन्दर आलेख
ReplyDeleteअर्चना अग्रवाल जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteबढिया जानकारी
ReplyDeletePrem Raj जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteबेहद शानदार जानकारी मनोज जी थैंक्स.
ReplyDeleteDinesh shukla जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteसावधान करती रोचक जानकारी..
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteबेहतरीन जानकारी मनोज सर थैंक्स.
ReplyDeleteSanil Sexena जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteरोचक जानकारी मनोज जी साधुबाद.
ReplyDeleteSonu Pandit जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteइन्टरनेट की दुनियाँ रोचक जानकारी जनाब शुक्रिया
ReplyDeletezahir khan जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteअजय जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
ReplyDeleteपूरण खण्डेलवाल जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत अच्छी और ज्ञान वर्धक जानकारी ,धन्यवाद मनोज जी
ReplyDeleteदिलीप सोनी जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteमनोज जी, इस विशय पर पहली बार किसी ने इतनी विस्तृत जानकारी दी है, बहुत बहुत धन्यवाद,,,,
ReplyDeleteanuraag जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deleteरोचक व् ज्ञानवर्धक जानकारी धन्यवाद मनोज जी
ReplyDeleteShivam Kumar जी, पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।
Deletebahut hi badhiya jankari .mai ese share karna chahta hu
ReplyDeleteअलोक त्रिपाठी जी,आपका स्वागत है।
Deleteइस पर पहली बार किसी ने इतनी विस्तृत जानकारी दी है, बहुत बहुत धन्यवाद.
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