अगर आप सोचते हैं कि प्याज के थोक भाव बढऩे से खुदरा भाव चढ़े हैं तो आप गलत हैं। यह तेजी कुछ प्याज कारोबारियों की सांठगांठ का नतीजा है, जिसने आम आदमी के साथ ही प्याज की खेती करने वाले किसान को भी रुला रखा है। कारोबारियों ने थोड़ा सा प्याज ऊंचे भाव पर खरीदा, जिससे लोगों को लगा कि इसके दाम बढ़ रहे हैं और पूरे बाजार में भाव बढ़ गए।
भाव भी ऐसे बढ़े कि नासिक में एपीएमसी की मंडियों में जिस दिन प्याज 3,000 रुपये से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था उसी दिन खुदरा बाजार में इसका दाम 70 रुपये प्रति किलो था। एपीएमसी के सूत्रों ने बताया कि लासलगांव मंडी में 20 दिसंबर को प्याज का थोक भाव अधिकतम 6,229 रुपये और न्यूनतम 1,200 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि इसकी औसत कीमत 3,800 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज की गई थी।
दिलचस्प है कि कारोबारियों ने थोक भाव का हवाला देते हुए प्याज के खुदरा दाम बढ़ाए थे। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक कारोबारी ने बताया, 'कारोबारियों ने एपीएमसी में ऊंचे दाम पर 20-30 क्विंटल प्याज खरीदा और बाकी प्याज बेहद कम भाव पर खरीदा। खुदरा भाव उन्होंने अधिकतम दाम के आधार पर ही तय किए। कम आपूर्ति के हालात में अक्सर ऐसा होता है।
दरअसल नवंबर में हुई बेमौसम बरसात से प्याज की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। एपीएमसी सूत्रों ने बताया कि प्याज की खेती में 25,000 रुपये प्रति एकड़ लागत आती है और अधिकतर किसान तो इसकी भरपाई भी नहीं कर पाये हैं।
प्याज निर्यात पर सरकारी रोक के बाद भाव नीचे आए हैं। मंगलवार को लासलगांव में प्याज का थोक भाव 2,351 रुपये प्रति क्विंटल था। नासिक के खुदरा बाजार में अच्छी किस्म का प्याज 35 रुपये प्रति किलोग्राम और छोटा प्याज 20 रुपये किलो मिल रहा था।
प्याज किसान तानाजी ने बताया, 'बारिश से मेरी खेती बरबाद हो गई और पांच एकड़ में 45 क्विंटल प्याज ही हुआ। लागत करीब 1 लाख रुपये आई थी, जबकि मुझे बिक्री से महज 81,000 रुपये मिले। निर्यात नहीं रुकता तो मेरी लागत निकल आती। भारतीय राष्टरीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'कर्नाटक और गुजरात में नई फसल आने लगी है। नासिक में जनवरी के अंत से फसल आ जाएगी। अगले साल फरवरी तक प्याज के दाम नीचे आ जाएंगे।
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