आइये जानते हैं टेक्नोलॉजी के कुछ साइड इफेक्ट

मनोज जैसवाल :सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। मेरी पिछली पोस्ट को अत्याधिक पसंद करने के लिए आप सभी का ह्रदय से आभार।अगर आप ब्लॉगर के प्लेटफार्म पर ब्लॉग लिखते हैं,तो आपने इसमे तमाम बदलाव देखे ही होंगे, इसी वजह से में विजेट,टेम्पलेट इत्यादि पर पिछले कुछ समय नहीं लिख रहा हूँ,उम्मीद है इसमे ठहराव आयेगा। आइये जानते हैं टेक्नोलॉजी के कुछ साइड इफेक्ट, टेक्नोलॉजी ने कतारें छोटी कर दी हैं। अब आपको स्टेशन पर, बस स्टॉप पर या सिनेमा हॉल पर एक अदद टिकट के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती।यह सब टेक्नोलॉजी का ही कमाल है। लेकिन जरा सोचिए, क्या इसने आपको आलसी नहीं बना दिया। बिल हो,‌ टिकट हो या फिर शॉपिंग, हर सुविधा एक क्लिक पर आपके दरवाजे पर मौजूद है।आलम यह है कि अब इन सुविधाओं का मजा लेने के लिए आपको कंप्यूटर या लैपटॉप भी ऑन नहीं करना पड़ता, फोन पर ही ऐसी हजारों एप्लीकेशंस मौजूद हैं।

बिगड़ती हैंडराइटिंग 

आपको स्कूल-कॉलेज में 'सुलेख' लिखने वाले वो दिन तो याद ही होंगे। राइटिंग खराब होती थी तो मास्टर जी हमारी उंगलियों की कायदे से मरम्मत कर देते थे।लेकिन, अब कीबोर्ड और फोन के कीपैड ने हमारी राइटिंग का कबाड़ा निकाल दिया है। दिलचस्प बात यह है कि आपकी प्रिय ‌टेक्नोलॉजी ने टेक्‍स्ट मैसेज की लैंग्वेज तो सिखा दी, गूगल ने शॉर्टकट और स्माइली भी बनाने सिखा दिए, लेकिन आपकी शब्दों की मेमोरी जाती रही।यही वजह है कि पिछले साल हुए एक सर्वे में पाया गया कि ऑटो करेक्ट जेनरेशन 'नेसेसरी' और 'सेपरेट' जैसे सामान्य शब्दों की स्पेलिंग भी सही नहीं लिख पाती है।

कहाँ गयी हमारी याददास्त 

नोट्स और अलार्म कैलेंडर आपके फोन में समा चुके हैं। ईमेल फोन से जुड़ा हुआ है।स्मार्ट कहा जाने वाला फोन खुदबखुद आपकी और आपके दोस्तों की जिंदगी से जुड़े अहम इवेंट्स को सोशल नेटवर्किंग साइट्स से सिंक करता है और तय समय पर आपको याद दिला ‌देता है कि आपको आज किसी को बर्थडे विश करना है या फिर फलां दिन आपने पहली डेट की थी।ऐसे लोगों का भी बड़ा तबका है जिसने जरूरी पासवर्ड तक याद करना छोड़ दिया है। ईमेल के ड्राफ्ट में पासवर्ड सेव रहते हैं और फोन हमेशा सीने से चिपका रहता है। किसी दिन बिना फोन ऑफिस पहुंच गए तो नंबरों के मोहताज हो जाते हैं।पिछले दिनों हार्वर्ड, कोलंबिया और विस्किंसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स ने भी एक शोध से खुलासा किया था कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से दिमाग और उसके याद करने की क्षमता पर भी गहरा असर पड़ता है।

बिगड़ती निजी लाइफ

हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि आम तौर पर हम दिनभर में करीब 150 बार अपना फोन चेक करते हैं, जिसमें 18 बार टाइम देखने के लिए और 23 बार मैसेजिंग के लिए फोन देखते हैं।इससे साफ जाहिर है कि टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी को कुछ इस कदर अपनी जद में ले लिया है, कि इससे निजात पाना न सही है और न ही संभव। फिर भी, सुबह की पहली चाय से लेकर नाइट वॉक तक शायद ही कोई ऐसा पल हो, जब फोन या लैपटॉप हमारे आस-पास मौजद नहीं होता।यही वजह है कि दोस्त से लेकर पार्टनर तक, बीवी से लेकर बॉस तक सब अक्सर हम पर बिफर पड़ते हैं। फेसबुक और ट्विटर का प्रोफाइल ही हमारी जिंदगी बनकर रह गया है। मेट्रो से लेकर बस तक हर जगह एक सेकेंड का भी वक्त आप अपने साथ नहीं बिताते।वक्त मिला नहीं कि झट से फेसबुक और ट्विटर ऑन हो जाता है। न नए दोस्त बनते हैं और न ही आप किसी हैंगआउट का मजा ले पाते हैं।

अटेंशन पाने की होड़

टेक्नोलॉजी के साथ यह बीमारी भी आती है। इसे आप 'एफबी अटेंशन सिंड्रोम' कह सकते हैं। लोगों के पास नई टेक्नोलॉजी आती नहीं कि वे हर वक्त, हर किसी से सिर्फ उसकी ही बात करते नजर आते हैं।अटेंशन पाने की होड़ में वे इस कदर जुट जाते हैं कि उनके दिमाग में सिर्फ फेसबुक स्टेटस, फोटो और कमेंट का ही ख्याल बना रहता है। कुछ लोग तो अपनी जिंदगी के कुछ बेहद निजी पलों को भी फेसबुक और ट्विटर पर साझा कर देते हैं। शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं होता कि लोग उनके बारे में क्या सोच रहे हैं।ऐसे भी कुछ मामले सामने आ चुके हैं, जब कुछ लोगों ने फेसबुक पर ही आत्महत्या करने का ऐलान कर दिया।डॉक्टरों की मानें तो लोग मानसिक तौर पर इतने कमजोर हो जाते हैं कि वे उसी को अपनी दुनिया समझने लगते हैं। और, जब लोग उनसे बात करना बंद करते हैं तो वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
क्रिएटिविटी हुई कम
हाथ में एक पुराना नोकिया फोन और नोट्स बनाने के लिए पेन और पेपर। सैन फ्रेंसिस्को के 32 साल के रॉबिन स्लोअन वक्त और टेक्नोलॉजी दोनों से पीछे नजर आते हैं।आपको जानकर हैरानी होगी कि वह सोशल मीडिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ट्विटर के मीडिया मैनेजर हैं।टेक्नोलॉजी के उस्ताद कहे जाने वाले रॉबिन को अहसास हुआ कि आईफोन और लैपटॉप की वजह से उनकी क्रिएटिविटी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। इसीलिए, उन्होंने कलम से नोट्स बनाने शुरू किए और फोन का इस्तेमाल सिर्फ कॉलिंग के लिए करना शुरू कर दिया।रॉबिन अपवाद नहीं हैं, जो ऐसा कर रहे हैं। ऐसे तमाम युवा हैं, जिन्हें महसूस हो रहा है कि टेक्नोलॉजी से उनकी क्रिएटिवटी कम हुई है। ‌कई रिसर्च स्टडीज में भी यह बात साबित हो चुकी है।

जिंदगी खतरे में

अब तक ‌टेक्नोलॉजी का सबसे खराब पहलू यही सामने आया है। अक्सर इसकी धुन में मस्त कई लोग दर्दनाक हादसों की चपेट में आ जाते हैं।इनमें सड़क हादसे और ट्रेन हादसे सबसे ज्यादा सामान्य हैं। हर कुछ दिन पर खबरें आती हैं कि फोन पर गाने सुनने के चक्कर में किसी युवा ने अपनी जान गवां दी।ऐसे ही कई मामले सामने आए हैं, जब स्कूल से निकलकर घर लौट रहे युवा ट्रेन को भी अनसुना कर देते हैं और टेक्नोलॉजी की भेंट चढ़ जाते हैं।कई युवा गाड़ी से चलते वक्त भी मैसेजिंग किया करते हैं। इस वजह से भी वे अपनी जिंदगी को खतरे में डाल लेते हैं। 

गैरजरूरी खरीददारी

ई कॉमर्स ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह अपने वश में कर लिया है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले साल आए एक सर्वे में पाया गया कि टायर टू शहरों में भी तेजी से ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज बढ़ रहा है।कंपनियां भी ऐसे शहरों को पोटेंशियल मार्केट के तौर पर देख रही हैं। अगर यह ‌कहा जाए कि इसका नशा किसी काले जादू की तरह हमारे सिर पर चढ़ चुका है, तो गलत नहीं होगा। ‌बेवक्त, बेवजह शॉपिंग ज्यादातर युवाओं का पसंदीदा शगल बन चुका है।पहले जो युवा अपने-अपने शहरों की सबसे गुलजार मार्केट का रुख करते थे, तो अब वे ऑनलाइन शॉपिंग से ही काम चला लेते हैं।इसमें भले ही उन्हें आकर्षक डील्स मिल जाती हैं, लेकिन न वे शॉपिंग का पूरा लुत्फ उठा पाते हैं और न ही प्रोडक्ट की गुणवत्ता परख पाते हैं। 

बढती अश्लीलता


पोर्न इंडस्ट्री हमारे जिंदगी में नया फिनॉमिना है, लेकिन यह भी टेक्नोलॉजी की ही उपज है। तमाम सर्वे के जरिए यह साबित हो चुका है कि हमारे देश में सबसे ज्यादा पोर्न कंटेंट देखा जाता है।गूगल ट्रेंड्स के मुताबिक, 2010-2012 के दौरान 60 हजार करोड़ रुपये की पोर्न इंडस्ट्री का उपभोग हमारे देश में दोगुना हो गया। इसकी एक बड़ी वजह मोबाइल पर पोर्न की मौजूदगी है।इतना ही नहीं, भारत के सात शहर पोर्न देखने वाले दुनिया के शीर्ष 10 शहरों में शामिल हैं। आजकल स्कूल जाने वाले बच्चों के पास भी स्मार्टफोन और लैपटॉप की सुविधा है और पोर्न कंटेंट उनसे सिर्फ एक क्लिक दूर है

दोस्ती हुई दूर 


जिंदगी में वर्चुअल दोस्तों से काम नहीं चलता।फेसबुक, याहू, ट्विटर और गूगल ने हमें एक आकर्षक वर्चुअल दुनिया से तो रूबरू कराया है, लेकिन हमारे स्कूल-कॉलेज और ऑफिस के दोस्त महज यादों और एफबी वॉल पर ही रह गए हैं।चैट से ही हम अपने हिस्से की दोस्ती निभा लेते हैं।
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32 कमेंट्स “आइये जानते हैं टेक्नोलॉजी के कुछ साइड इफेक्ट ”पर

  1. बेहतरीन जानकारी थैंक्स.

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    1. देवेन्द्र सिंह जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  2. Replies
    1. mohit जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  3. सच्ची बात है मनोज जी अच्छा लेख

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    1. Dinesh shukla जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  4. सार्थक जानकारी हेतु आभार . चमन से हमारे जाने के बाद . साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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    1. Shalini Kaushik जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  5. अच्छा लेख बेहतरीन जानकारी थैंक्स.

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    1. हरीश बिष्ट जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  6. लाजवाब और बेहतरीन जानकारी | आभार

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    1. तुषार जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  7. हर किसी वस्तु के फायदे भी होते हैं और नुकसान भी!! तो इसके तो होने ही थे। :)
    सुन्दर लेखन। धन्यवाद।

    घुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।

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    1. हर्षवर्धन जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  8. सही कहा है लेकिन हर बात के दो पहलु होते ही है अब वो उस पर निर्भर है कि कोई उसका उपयोग किस तरीके से करता है !

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    1. जी हाँ यही सच है पूरण जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  9. बेहतरीन जानकारी थैंक्स.

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    1. Vikas sexena जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  10. दीवानी इन्तजार जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  11. Replies
    1. Hitesh Rathi जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  12. Replies
    1. Neelesh Gajbhiye जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  13. हर किसी वस्तु के फायदे भी होते हैं और नुकसान भी,अब वो उस पर निर्भर है कि कोई उसका उपयोग किस तरीके से करता है बेहतरीन जानकारी थैंक्स.

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    1. Sanil Sexena जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  14. हर बात के दो पहलु होते ही है,बेहतरीन जानकारी,आभार

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    1. सही बात है राजेंद्र जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  15. बेहतरीन जानकारी थैंक्स.

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    1. सतीश सक्सेना जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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  16. सच कहा है ... नफ़ा नुक्सान ... दोनों ही हैं ...

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    1. दिगम्बर नासवा जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आभार।

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