Tweet मनोज जैसवाल==अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने पाकिस्तान के तीन खिलाड़ियों को स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में अगले कुछ वर्ष तक न खेलने देने का दंड दिया है। इस दंड की सजा सुनाने के लिये एक गोरा चेहरा लाया गया ताकि यह लगे कि सारा काम ईमानदारी से ईमानदारी लाने के लिये किया गया है। मगर कमबख्त जिस तरह सावन का अंधा हर जगह हरियाली देखता है वैसे ही क्रिकेट का वह अंधा सभी जगह फिक्सिंग देखता है जिसने कई वर्षों तक अपनी आंखों टीवी पर मैच देखकर बर्बाद की और अब जाकर पता लगा कि इसमें मैच ही नहीं बल्कि हर बॉल फिक्स होती है।
पहले तो यह माना जाता था कि गोरे ईमानदार हैं पर अब वह बात नहीं रही। क्रिकेट में कोई मैच बिना फिक्सिंग के भी हो सकता है यह मानना अब कठिन लगता है। याद रखिये भारत के कुछ खिलाड़ी भी फिक्सिंग का दंड भोग चुके हैं और उससे अनेक क्रिकेट प्रेमियों को निराश किया। सच तो यह है कि यह खेल अब खेल नहीं बल्कि व्यापार है। व्यापार में जिस तरह वस्तु बेचने के लिये तमाम तरह का प्रचार किया जाता है वैसा ही क्रिकेट के खिलाड़ियों का हो रहा है। यह जरूरी नहीं है कि जिस चीज की कोई विशेषता बताई जा रही है वह उसमें न हो पर यह व्यापार और प्रचार का हिस्सा है। उसे गलत नहीं माना जाता। यही स्थिति क्रिकेट भी व्यापार है। हो सकता है कि लोग किसी टीम को जीतने की इच्छा से मैदान पर आयें पर वह हार जाये पर उससे पहले मैदान पर दर्शकों को खींचने के लिये उनकी जीतने की इच्छा वाली टीम के खिलाड़ियों को नायक की तरह प्रचारित करना जरूरी है। भारतीय टीम के एक एक खिलाड़ी का जीवन चरित्र प्रचारित हो रहा है। वह बचपन में क्या खाता था, अब क्या खाता है, पहले कहां पढ़ता था और तब उसके दोस्त कौन थे? गोया भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होना जैसे किसी फिल्म के लिये अच्छे अभिनय के लिये पुरस्कार मिलने जैसा हो। बहरहाल चूंकि अब हम क्रिकेट को खेल न मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मानते हैं तब कुछ भी बुरा नहीं लगता। यकीन करिये न मैच फिक्स होना बुरा लगता है और न ही स्पॉट फिक्सिंग।
अगला एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप भारत में होना है। पहले यह पाकिस्तान में होना था मगर भारत को अवसर मिल गया। मिलना ही था क्योंकि पूरे विश्व की क्रिकेट का खेल भारतीय कंपनियों के विज्ञापन से चल रहा है। इसके मैचों पर सट्टा भी एशियाई देशों में अधिक लगता है और यकीनन भारत में इसके स्त्रोत अधिक हैं। जिस तरह दुनियां में एक नंबर और दो नंबर के धंधेबाजों के हर क्षेत्र में संयुक्त उद्यम चल रहे हैं उसे देखकर लगता है कि क्रिकेट मैचों में कहीं न कहीं फिक्सिंग होती ही होगी। कंपनियों को विज्ञापन तथा उत्पाद बेचने हैं इसलिये खिलाड़ियों के चेहरे चमकाने हैं। सट्टेबाजों को आम लोगों के जुआ खेलने की आदत का लाभ उठाना है सो फिक्सिंग करानी है। सट्टेबाज ही कंपनियों में भी भारी विनिवेश करते हैं। उनसे कोई बैर नहीं बांधता क्योंकि धनपति तो उनकी कृपा से शिखर पर पहुंचे हैं। मतलब काले धंधों का चेहरा अब कंपनियों के सफेद चेहरे के पीछे छिप जाता है जो कि भारतीय होने के साथ और क्रिकेट का मज़बूत आधार भी हैं।
भारतीय टीम के खिलाड़ियों का जोरदार प्रचार हो रहा है। इन सभी का खेल जाना पहचाना है और अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में सबकी असलियत पता लग ही गयी थी। क्रिकेट के कथित भगवान की चाहत है कि एक विश्व कप उसके नाम पर चढ़ जाये पर लगता नहीं है कि पूरी होगी। भारतीय खिलाड़ियों के पास पैसा देश की कंपनियों की वजह से आ रहा है पर उनमें पराक्रम चाहे कितना भी हो रणनीतिक क्षेत्र में उनका ज्ञान शून्य है जबकि आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीमें रणनीति के साथ खोलती हैं। उसके बाद न्यूजीलैंड, वेस्ट इंडीज और श्रीलंका की टीमें भी कम नहीं है।
बाज़ार और प्रचार प्रबंधक देश में किसी तरह क्रिकेटमय वातवरण बनाना चाहते हैं पर लगता है कि बन नहीं रहा। पहले लोग शिद्दत के साथ इंतजार करते थे वह अब नहीं दिखता। मैच होंगे तो जबरन हर चैनल पर देखने ही पड़ेंगे। अखबार भी रंगे होंगे। इसके बावजूद क्रिकेट के लिये पहले जैसा वातावरण नहीं है।
पाकिस्तान एक आसान लक्ष्य है इसलिये उसके खिलाड़ी दंडित हो गये पर दुनियां के अन्य देशों के खिलाड़ी आरोप लगने और प्रमाण होने के बावजूद बचते रहे हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को दंडित कर इस क्रिकेट के साफ सुथरे होने के संकेत भारत के लोगों को भेजे गये हैं ताकि वह मैदान पर पैसा खर्च करें और उनके खिलाड़ियों के अभिनीत विज्ञापनों पर नज़र डालें। पाकिस्तान के प्रति में भारतीय लोगों में नाराजगी भी है इसलिये उसका दोहन करने के लिए यहाँ पाकिस्तानी खिलाड़ियों को दंडित कर यहां के दर्शकों को प्रसन्नता देने का भी यह प्रयास लगता है। हम यह नहीं कहते कि ऐसा ही है पर क्रिकेट में अपना दिल और समय लगाया और वह टूट गया तो ऐसा कि मानता ही नहीं कि अब इसमें कुछ साफ सुथरा बचा है
पहले तो यह माना जाता था कि गोरे ईमानदार हैं पर अब वह बात नहीं रही। क्रिकेट में कोई मैच बिना फिक्सिंग के भी हो सकता है यह मानना अब कठिन लगता है। याद रखिये भारत के कुछ खिलाड़ी भी फिक्सिंग का दंड भोग चुके हैं और उससे अनेक क्रिकेट प्रेमियों को निराश किया। सच तो यह है कि यह खेल अब खेल नहीं बल्कि व्यापार है। व्यापार में जिस तरह वस्तु बेचने के लिये तमाम तरह का प्रचार किया जाता है वैसा ही क्रिकेट के खिलाड़ियों का हो रहा है। यह जरूरी नहीं है कि जिस चीज की कोई विशेषता बताई जा रही है वह उसमें न हो पर यह व्यापार और प्रचार का हिस्सा है। उसे गलत नहीं माना जाता। यही स्थिति क्रिकेट भी व्यापार है। हो सकता है कि लोग किसी टीम को जीतने की इच्छा से मैदान पर आयें पर वह हार जाये पर उससे पहले मैदान पर दर्शकों को खींचने के लिये उनकी जीतने की इच्छा वाली टीम के खिलाड़ियों को नायक की तरह प्रचारित करना जरूरी है। भारतीय टीम के एक एक खिलाड़ी का जीवन चरित्र प्रचारित हो रहा है। वह बचपन में क्या खाता था, अब क्या खाता है, पहले कहां पढ़ता था और तब उसके दोस्त कौन थे? गोया भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होना जैसे किसी फिल्म के लिये अच्छे अभिनय के लिये पुरस्कार मिलने जैसा हो। बहरहाल चूंकि अब हम क्रिकेट को खेल न मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मानते हैं तब कुछ भी बुरा नहीं लगता। यकीन करिये न मैच फिक्स होना बुरा लगता है और न ही स्पॉट फिक्सिंग।
अगला एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप भारत में होना है। पहले यह पाकिस्तान में होना था मगर भारत को अवसर मिल गया। मिलना ही था क्योंकि पूरे विश्व की क्रिकेट का खेल भारतीय कंपनियों के विज्ञापन से चल रहा है। इसके मैचों पर सट्टा भी एशियाई देशों में अधिक लगता है और यकीनन भारत में इसके स्त्रोत अधिक हैं। जिस तरह दुनियां में एक नंबर और दो नंबर के धंधेबाजों के हर क्षेत्र में संयुक्त उद्यम चल रहे हैं उसे देखकर लगता है कि क्रिकेट मैचों में कहीं न कहीं फिक्सिंग होती ही होगी। कंपनियों को विज्ञापन तथा उत्पाद बेचने हैं इसलिये खिलाड़ियों के चेहरे चमकाने हैं। सट्टेबाजों को आम लोगों के जुआ खेलने की आदत का लाभ उठाना है सो फिक्सिंग करानी है। सट्टेबाज ही कंपनियों में भी भारी विनिवेश करते हैं। उनसे कोई बैर नहीं बांधता क्योंकि धनपति तो उनकी कृपा से शिखर पर पहुंचे हैं। मतलब काले धंधों का चेहरा अब कंपनियों के सफेद चेहरे के पीछे छिप जाता है जो कि भारतीय होने के साथ और क्रिकेट का मज़बूत आधार भी हैं।
भारतीय टीम के खिलाड़ियों का जोरदार प्रचार हो रहा है। इन सभी का खेल जाना पहचाना है और अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में सबकी असलियत पता लग ही गयी थी। क्रिकेट के कथित भगवान की चाहत है कि एक विश्व कप उसके नाम पर चढ़ जाये पर लगता नहीं है कि पूरी होगी। भारतीय खिलाड़ियों के पास पैसा देश की कंपनियों की वजह से आ रहा है पर उनमें पराक्रम चाहे कितना भी हो रणनीतिक क्षेत्र में उनका ज्ञान शून्य है जबकि आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीमें रणनीति के साथ खोलती हैं। उसके बाद न्यूजीलैंड, वेस्ट इंडीज और श्रीलंका की टीमें भी कम नहीं है।
बाज़ार और प्रचार प्रबंधक देश में किसी तरह क्रिकेटमय वातवरण बनाना चाहते हैं पर लगता है कि बन नहीं रहा। पहले लोग शिद्दत के साथ इंतजार करते थे वह अब नहीं दिखता। मैच होंगे तो जबरन हर चैनल पर देखने ही पड़ेंगे। अखबार भी रंगे होंगे। इसके बावजूद क्रिकेट के लिये पहले जैसा वातावरण नहीं है।
पाकिस्तान एक आसान लक्ष्य है इसलिये उसके खिलाड़ी दंडित हो गये पर दुनियां के अन्य देशों के खिलाड़ी आरोप लगने और प्रमाण होने के बावजूद बचते रहे हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को दंडित कर इस क्रिकेट के साफ सुथरे होने के संकेत भारत के लोगों को भेजे गये हैं ताकि वह मैदान पर पैसा खर्च करें और उनके खिलाड़ियों के अभिनीत विज्ञापनों पर नज़र डालें। पाकिस्तान के प्रति में भारतीय लोगों में नाराजगी भी है इसलिये उसका दोहन करने के लिए यहाँ पाकिस्तानी खिलाड़ियों को दंडित कर यहां के दर्शकों को प्रसन्नता देने का भी यह प्रयास लगता है। हम यह नहीं कहते कि ऐसा ही है पर क्रिकेट में अपना दिल और समय लगाया और वह टूट गया तो ऐसा कि मानता ही नहीं कि अब इसमें कुछ साफ सुथरा बचा है
सुन्दर व् ज्ञानवर्धक जानकारी मनोज जी साधुबाद
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