कपटी चालों की शिकार न बन जाए मुहिम

मनोज जैसवाल-भ्रष्टाचार के खिलाफ उम्मीद के साथ शुरू हुई मुहिम अब सरकार द्वारा प्रायोजित 'शकुनि डिपार्टमेंट' की कपटी चालों की शिकार बनती नजर आ रही है। ऐसा नहीं है कि इसका अंदेशा नहीं था। मैंने खुद कई बार कहा है कि अलग-अलग किस्म और पार्टियों के नेता, कभी जन लोकपाल ड्राफ्ट का समर्थन नहीं करेंगे क्योंकि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव उन्हीं पर पड़ना है। लेकिन इस मुहिम का नेतृत्व कर रहे लोगों पर हर तरफ से हो रहे हमलों की तीव्रता अविश्वसनीय है।

जिस शर्मनाक तरीके से सत्तारूढ़ दल ने जॉइंट कमिटी में शामिल सिविल सोसायटी के सदस्यों को बदनाम करने की कोशिश की है, वह किसी भी सभ्य व्यक्ति के लिए करारा झटका हो सकता है। ईमानदारी से कहूं, तो मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ था कि सरकार ने अन्ना हजारे की संयुक्त समिति बनाने की मांग इतनी आसानी से मान ली थी। सरकार की यह चाल किसी से छुप नहीं सकती।

सरकार के पास इस मुहिम को शुरुआत में ही दबा देने के कई कारण हैं। लगातार मीडिया का फोकस बने रहने के कारण अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के ऐसे प्रतीक बनते जा रहे थे जिन्हें टीवी देखने वाला वर्ग हाथों-हाथ ले रहा था। सरकार के लिए उनके खरे-खरे बयान और स्पष्ट बातों को संभालना मुश्किल हो रहा था। सत्ता पक्ष के धूर्त वकीलों-नेताओं ने तभी सोच लिया होगा कि इस चिंगारी को आग में बदलने से कैसे रोकना है।

अन्ना के अनशन के दौरान मीडिया में सुलह करने और हल निकालने के बयानों की तर्ज पर सभ्य लोगों की तरह मसले पर चर्चा करने के बजाय, वे हर दिशा से कमिटी के कुछ सदस्यों का चरित्रहनन करने में जुट गए। जैसे कि कुछ दिनों पहले अन्ना ने सोनिया गांधी को अपनी चिट्ठी में लिखा था कि इन आधारहीन और मनगढ़ंत आरापों के पीछे सत्ता पक्ष के कुछ वरिष्ठ नेताओं का हाथ है और ऐसा मालूम होता है कि यह काम करने के लिए उन्हें पार्टी का समर्थन मिला हुआ है। एक दब्बू मीडिया हाउस को गलत खबरें लीक करने से लेकर हर वह कपटी चाल अपनाई गई जो कई कॉर्पोरेट हाउस अपनाते हैं। 'शकुनि डिपार्टमेंट' ने तो भारतीय राजनीति की 'सारी अच्छाइयों' के संत समान प्रतीक अमर सिंह को भी इस काम में लगा दिया।

विस्तार में जाए बगैर यह बात ध्यान देने वाली है कि शांति भूषण टेप में भी अमर सिंह अवतरित होते हैं और उस जज का जिक्र आता है जो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच की सुनवाई कर रहे हैं। सत्ता पक्ष जो अनगिनत घोटालों के चलते बैकफुट पर है, उसके लिए यह एक तीर से दो शिकार वाली बात है। एक तो इस घोटाले की वजह से उनकी हालत खराब है और दूसरा, अमर सिंह के बेहद करीबी कॉर्पोरेट भी इसमें शामिल हैं।

'कपटी चाल विभाग' ने एक ही वार में सिविल सोसायटी के लोगों को अविश्वसनीय साबित करने की कोशिश की ताकि आम जनता निराश होकर अपने हाथ खड़े कर दे और यह कहे - ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक बन चुके चेहरों के खिलाफ अमर सिंह को खड़ा कर दिया, जिनका खुद का राजनीतिक भविष्य अधर में है और वह किसी राजनीतिक खेमे के साथ नहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इसने असल मुद्दे से लोगों का ध्यान भटका कर आरोप-प्रत्यारोप के दौर में उलझा दिया है। और यकीन मानिए, यदि शांति भूषण और प्रशांत भूषण को कमिटी से हटाया जाता है तो उनकी जगह लेने वालों के खिलाफ भी इसी तरह से बदनाम करने का अभियान छेड़ा जाएगा।

सोनिया को लिखी चिट्ठी में अन्ना ने अपनी खास साफगोई वाली शैली में यह कहा है कि इस तरह का चरित्र हनन भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के लिए अच्छ नहीं है और जो नेता व राजनीतिक लोग इसमें लिप्त हैं, इसमें उनके नंगे होने का डर कहीं ज्यादा है। तमाम बु्द्धिजीवी टाइप लोग कह रहे हैं कि अन्ना हमेशा रोने वाले बच्चे की तरह शिकायती लहजा अपना रहे हैं। यह अलग बात है कि यह चेतावनी देते वक्त अन्ना यह भूल गए कि सिविल सोसायटी के लोगों से उलट उनका पाला मोटी चमड़ी वाले भ्रष्ट नेताओं से पड़ा है।

'कपटी चाल डिपार्टमेंट' ने एक और मोर्चा खोला - तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग। बेशक इस बात पर बहस हो सकती है कि भ्रष्टाचार विरोध विधेयक में क्या-क्या बातें रखी जाएं और सिविल सोसायटी की तरफ से कौन इस कमिटी का सदस्य बने या फिर उनके चुने जाने का पैमान क्या हो - लेकिन इस मामले में जिस तरह से हमारे 'शिक्षित' वर्ग ने जो प्रतिक्रिया दी, उससे उबकाई आती है। जब बातचीत में सभ्यता दिखाने की जरूरत थी तब इन पढ़े-लिखे लोगों ने इस आंदोलन को ब्लैकमेल का नाम दे दिया। यह तो वही बात हुई कि सूप बोले तो बोले, चलनी क्या बोले, जिसमें बहत्तर छेद।

जिस तरह से ये लोग (बुद्धिजीवी) दूसरों की राय को कूड़ा बताते हैं, वह हैरत में डालने वाला है। इन्हें लगता है कि जो लोग इनके विचार से सहमत नहीं हैं, वे बेवकूफ हैं। ये लोग अपने दुष्प्रचार में इतने प्रभावी हैं कि मैंने कई लोगों को अपनी राय बदलते देखा है सिर्फ इसलिए कि वे इस 'महान कैंप' का हिस्सा दिखें।

खैर, जैसा कि मैंने कहा, यह सब वैसे ही हो रहा है जैसा अंदेशा था और मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में आरोप- प्रत्यारोप और गंभीर और तीखे होने वाले हैं। मैंने देखा है कि यह दुष्प्रचार अभियान किस तरह से उन लोगों पर बुरा असर डाल रहा है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाना चाहते हैं। पिछले एक हफ्ते में ड्राफ्ट पर काम करने की बजाय उन्होंने इन मनगढ़ंत आरोपों का जवाब देने में ज्यादा समय खर्च किया है। सरकार का शकुनि डिपार्टमेंट यही तो चाहता है- उन्हें इतना थका दिया जाए कि वे समझौता करने को मजबूर हो जाएं और जनता में भी इस मुद्दे पर शोर कम हो जाए। अब जिम्मेदारी हम लोगों पर, सच का साथ देने वालों पर है कि हम अपना ध्यान न बंटने दें। इस मुद्दे पर हमारी मांग थमनी नहीं चाहिए और न ही हमारा समर्थन कम होना चाहिए ताकि भ्रष्ट खुद ही थक-हार जाएं।
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2 कमेंट्स “कपटी चालों की शिकार न बन जाए मुहिम”पर

  1. मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ था कि सरकार ने अन्ना हजारे की संयुक्त समिति बनाने की मांग इतनी आसानी से मान ली थी। सरकार की यह चाल किसी से छुप नहीं सकती।

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  2. इस समिति ने बड़ी कठोरता से भ्रष्टाचारियों की मुहिम का जबाब दिया है और तस से मस नहीं हुई। इससे इस अभियान के मंसूबों पर पानी फिर गया है। किन्तु यह शकुनि मंडली इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है। देश की जनता को रोड पर आना होगा।

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