नेताजी को पहली बार महसूस हुआ कि धरती पर जब वे चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को सब्जबाग दिखाते थे और चुनावों के बाद उन्हें छलते थे, तब जनता को भी कुछ-कुछ ऐसा ही लगता होगा।
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अच्छी व्यंग रचना !!
ReplyDeleteकलयुगी नेताओं के साथ ऍसा ही होना है अति सुन्दर...
ReplyDelete@पूरण खण्डेलवाल जी,पोस्ट पर राय के लिए दिल से आभार।
ReplyDeleteGreat Post,Sir.
ReplyDeleteअच्छी व्यंग रचना,मनोज सर थैंक्स.
ReplyDeleteबेहद शानदार पोस्ट साधुबाद
ReplyDeleteश्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
@डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी,आपका सादर आभार।
ReplyDeleteVery Nice
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट....
ReplyDeleteसन्नाट व्यंग..जो किया वही मिला..
ReplyDeleteजैसे को तैसा मिले तो मज़ा आ जाए !
ReplyDeleteसभी आदरणीय साथिओं का पोस्ट पर राय के लिए तहे दिल से आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व्यंगात्मक प्रस्तुति.
ReplyDeleteतो यूं आया ऊंट पहाड़ के नीचे
ReplyDeleteतकनीक के साथ साथ आर्टिकल्स में भी आपकी अच्छी पकड़ है।
ReplyDeleteआदरणीय काजल कुमार जी,एंव राजेंदर कुमार जी,आमिर अली जी पोस्ट पर टिप्पणी के लिए आप का दिल से आभार।
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