सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पाकिस्तान के एक पूर्व राष्ट्रपति टीवी चैनल पर जाकर घोषणा करते हैं कि उनके मुताबिक उनके देश में जल्दी ही लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार का तख्ता पलटने वाला है और जनरल सत्ता पर कब्जा करने वाले हैं। इस घोषणा के बाद न उस मुल्क में कोई खास प्रतिक्रिया होती है और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका विशेष असर पड़ता है, जैसे कि सभी ने मान लिया हो कि ऐसा तो होता ही रहता है और हो भी गया तो क्या होगा? मैंने तो इतिहास में यह सुना था कि तख्ता पलट अचानक होता है और इसकी भनक भी किसी को नहीं लगती है। पाकिस्तान में तो अब यह नौबत आ गई है कि एक तानाशाह चैनलों पर घोषणा कर रहा है कि जल्दी ही दूसरा तानाशाह आने वाला है, जो किसी जमाने में उनके मातहत काम कर चुका है और उन्होंने ही उसको सेनाध्यक्ष बनाया था। मेरे ख्याल से इससे पूरे विश्व को सतर्क होना चाहिए-खासतौर से अमेरिका को जो पाकिस्तान के बारे में सारे महत्वपूर्ण फैसले करता है। अमेरिका अपने आपको विश्व में लोकतंत्र का सबसे बड़ा अलंबरदार मानता है। उसका दावा है कि विश्व में हर देश में उसे लोकतंत्र का ही समर्थन करना है और जहां लोकतंत्र नहीं वहां हस्तक्षेप करके लोकतंत्र लाना है। इराक में लोकतंत्र लाने के नाम पर अमेरिका ने हस्तक्षेप किया। अफगानिस्तान में लोकतंत्र चलाए रखने के लिए अमेरिकी फौजें तैनात हैं। ईरान में लोकतंत्र लाने की चेतावनी अमेरिका लगातार वहां के शासकों को दे रहा है। पाकिस्तान के नाम पर वह चुप्पी साध जाता है और जब एक सैनिक शासक आ जाता है तो धीरे से उसको समर्थन देने लगता है। यदि अमेरिका लोकतंत्र का सबसे बड़ा समर्थक है तो उसको मुर्शरफ की इस घोषणा के बाद पाकिस्तान में ऐसे बंदोबस्त कर देने चाहिए ताकि फिर से सैनिक तानाशाही वापस न आ सके।
जरदारी कैसे भी हों, गिलानी कैसे भी हों, जनता के लिए जवाबदेह हैं और उन्हें रखने और हटाने का अधिकार कम से कम जनता के पास है। जब वहां सैनिक तानाशाह आ जाता है तो जनता के हाथ में कुछ नहीं रहता। सैनिक अफसरों के हाथ में तहसील से लेकर इस्लामाबाद तक का सारा प्रशासन आ जाता है और बिना किसी जवाबदेही के ये अफसर जमकर भ्रष्टाचार करते हैं और हर किसी को सताते हैं। मुशर्रफ अपने इंटरव्यू में यह फरमाते हैं कि परसों जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की जनरल कयानी से मुलाकात हुई और उस मुलाकात के फोटो जैसे छपे हैं उससे लगता है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री असहज हैं और जनरल कमान संभाल सकते हैं। उन्होंने जनरल कयानी का पक्ष लेते हुए यह भी फरमाया है कि देश के मौजूद हालात से जरनल परेशान हैं और बिगड़ती स्थितियों में उन्हें कुछ न कुछ करना होगा, जैसे कि देश की चिंता सिर्फ जनरल साहब को है। अब इसमें दो बातें हैं-या तो मुशर्रफ का सियासत में फिर से आने का रास्ता खुल जाए अथवा जनरल कयानी और मुशर्रफ के चैनल अभी तक कायम हैं और दोनों एक दूसरे से लगातार बात करके रणनीति बनाते हैं। मुशर्रफ कुछ सौदा भी कर सकते हैं जिसमें वह खुद प्रधानमंत्री बन जाएं और कयानी को राष्ट्रपति बना दें। सत्ता की छटपटाहट में वह पुराने मातहत के मातहत रहने को तैयार हो सकते हैं। सबको याद होगा कि जब मुशर्रफ साहब राष्ट्रपति थे तो उन्होंने मुस्लिम लीग के नेता को एक तरह से प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। पाकिस्तान में मेरे तमाम दोस्त हैं और मैं जाता भी रहता हूं। मुझे सचमुच वहां के लोगों की किस्मत पर तरस आता है। अभी भी वहां स्थायित्व या टिकाऊ सरकार नहीं रह पाती है, जिससे विकास नहीं हो पाता है। वहां 10 प्रतिशत बहुत अमीर हैं और 70 प्रतिशत लोग गरीब हैं। मुश्किल से 20 प्रतिशत जनसंख्या धीरे-धीरे मध्यम वर्ग की श्रेणी में आ रही है। हमेशा एक हीन भावना का शिकार वहां का समाज रहता है। वह वोट से सरकार चुनता है, उस सरकार को सेना हटा देती है, फिर सेना से तंग होकर सड़कों पर उतरती है, फिर से लोकतंत्र लाती है, नई सरकार बिठाती है, कुछ साल में फिर सेना उस सरकार को हटा देती है। जिन्ना की मुस्लिम लीग को कुछ ही साल हुए थे कि अयूब खान ने हटा दिया। उसके बाद याह्या खान आ गए। भारत से जंग में हार के बाद मुल्क का माहौल बिगड़ गया। याह्या खान को जाना पड़ा और चुनकर भुट्टो आ गए। कुछ ही साल में भुट्टो को जनरल जियाउल हक ने हटा दिया। जिया ने भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया। जब जिया के खिलाफ माहौल बिगड़ रहा था उसी समय वह जहाज हादसे में मारे गए। उसके बाद बेनजीर भुट्टो आई। उन्हें भी सैनिक शासकों ने नहीं चलने दिया। उसके बाद सैनिक शासकों की कृपा पर नवाज शरीफ आए, जिन्हें उनके जनरल मुशर्रफ ने हटा दिया।
जब मुशर्रफ के खिलाफ माहौल बिगड़ा तो जनता फिर चुनी हुई सरकार जरदारी के नेतृत्व में लाई और अब जरदारी की बारी है। घड़ी के पेंडुलम की तरह पाकिस्तान की जनता इधर से उधर भटकती रहती है। जो भी सैनिक शासक आता है वह जमकर भ्रष्टाचार करता है और हमेशा भारत का डर दिखाकर अपनी सेना का बजट बढ़ाता रहता है। जब-जब खजाने खाली होते हैं, पाकिस्तान का शासक वाशिंगटन दौड़कर जाता है और कुछ न कुछ धन मांग कर ले आता है। पिछले 62 साल से पाकिस्तान की यही फितरत है। धीरे-धीरे आतंकवादियों ने मुल्क जकड़ लिया। पाकिस्तान को सिर्फ एक बात के लिए जाने जाना लगा कि विश्व में कहीं भी आतंकवादी घटना हो उसमें कोई पाकिस्तानी जरूर शामिल होगा।
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