नई दिल्ली. विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम न उजागर करने पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार पर दबाव बढ़ गया है। देश की नजरें इस ओर टिकी हैं कि क्या सरकार काला धन वापस लाने के लिए कुछ कदम उठाने जा रही है? दूसरी ओर स्विट्जरलैंड सरकार ने भी बैंकों से काला धन ले जाने के लिए सभी देशों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। ऐसे में विदेशी बैंकों में जमा 70 लाख करोड़ की काली कमाई का रास्ता खुलता दिख रहा है लेकिन इन सब के बीच अहम सवाल यह है कि आखिर कौन सी वजह थी जिससे स्विस बैंक सहित अन्य बैंकों में जमा इस धन की हकीकत सामने नहीं आ सकी थी।
स्विस बैंक, लिंचेस्टाइन बैंक जैसे कई ऐसे ‘ठिकाने’ हैं जो काला धन जमा करने वालों के लिए ‘स्वर्ग’ जैसे हैं। इस संदर्भ में इन बैंकों की कार्यप्रणाली को जानना जरूरी होगा।
स्विस बैंक की गोपनीयता
माना जाता है कि विदेशी बैंकों में जमा काले धन का अधिकतर हिस्सा स्विस बैंक में पड़ा है। दरअसल स्विट्जरलैंड के कानून के मुताबिक बैंकों में जमा धन की गोपनीयता बरकरार रखना नागरिक अधिकारों के तहत आता है। चाहे वह स्विट्जरलैंड का नागरिक हो या विदेशी नागरिक, यदि उसका धन स्विट्जरलैंड के बैंक में जमा है तो इसे गोपनीय माना जाता है। हालांकि आपराधिक गतिविधियों के जरिये इकट्ठा किए गए धन इन बैंकों में जमा होने की आशंका पर संघीय सरकार बैंकिंग गोपनीयता कानून 1934 के दायरे से बाहर जाकर ऐसे संदिग्ध खाते की जांच कर सकती है। वैसे ऐसी घटनाओं से बचने के लिए बैंक पूरी पड़ताल करते हैं। स्विट्जरलैंड की जनता तो बैंकिंग गोपनीयता के अधिकार को देश के संविधान में लागू करने के लिए वोटिंग भी कर रही है।
पिछले साल अगस्त में भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरे कराधान से बचाव संबंधी एक संशोधित संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संशोधित संधि से भारत सरकार को स्विस बैंकों में किसी भी भारतीय द्वारा कथित तौर पर जमा किए गए काले धन का ब्योरा हासिल करने में मदद मिलेगी।
काला धन जमा करने वालों के लिए स्वर्ग है लिंचेस्टाइन
‘टैक्स हेवन’ के तौर पर मशहूर जर्मनी के लिंचेस्टाइन में एलजीटी बैंक पिछले दिनों काफी विवादों में रहा। जर्मनी के टैक्स अधिकारियों ने एक सूचना मिलने पर इस बैंक में जमा कई लोगों के खातों की जांच की और टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की। इस बैंक में जर्मनी सहित दुनिया के कई देशों के नागरिकों की करीब 5 लाख यूरो की राशि जमा होने की बात सामने आई थी।
एलजीटी बैंक का असली नाम लिंचेस्टाइन ग्लोबल ट्रस्ट है जो यूरोप का सबसे बड़ा ट्रस्ट है। इसका पूरा स्वामित्व प्रिंस ऑफ लिंचेस्टाइन फाउंडेशन के जिम्मे है। इस ट्रस्ट में करीब 1900 कर्मचारी है जो यूरोप, एशिया, मध्य पूर्व और अमेरिका में 29 से अधिक दफ्तरों में कार्यरत हैं।
manojjaiswalpbt@gmail.com
स्विस बैंक, लिंचेस्टाइन बैंक जैसे कई ऐसे ‘ठिकाने’ हैं जो काला धन जमा करने वालों के लिए ‘स्वर्ग’ जैसे हैं। इस संदर्भ में इन बैंकों की कार्यप्रणाली को जानना जरूरी होगा।
स्विस बैंक की गोपनीयता
माना जाता है कि विदेशी बैंकों में जमा काले धन का अधिकतर हिस्सा स्विस बैंक में पड़ा है। दरअसल स्विट्जरलैंड के कानून के मुताबिक बैंकों में जमा धन की गोपनीयता बरकरार रखना नागरिक अधिकारों के तहत आता है। चाहे वह स्विट्जरलैंड का नागरिक हो या विदेशी नागरिक, यदि उसका धन स्विट्जरलैंड के बैंक में जमा है तो इसे गोपनीय माना जाता है। हालांकि आपराधिक गतिविधियों के जरिये इकट्ठा किए गए धन इन बैंकों में जमा होने की आशंका पर संघीय सरकार बैंकिंग गोपनीयता कानून 1934 के दायरे से बाहर जाकर ऐसे संदिग्ध खाते की जांच कर सकती है। वैसे ऐसी घटनाओं से बचने के लिए बैंक पूरी पड़ताल करते हैं। स्विट्जरलैंड की जनता तो बैंकिंग गोपनीयता के अधिकार को देश के संविधान में लागू करने के लिए वोटिंग भी कर रही है।
पिछले साल अगस्त में भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरे कराधान से बचाव संबंधी एक संशोधित संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संशोधित संधि से भारत सरकार को स्विस बैंकों में किसी भी भारतीय द्वारा कथित तौर पर जमा किए गए काले धन का ब्योरा हासिल करने में मदद मिलेगी।
काला धन जमा करने वालों के लिए स्वर्ग है लिंचेस्टाइन
‘टैक्स हेवन’ के तौर पर मशहूर जर्मनी के लिंचेस्टाइन में एलजीटी बैंक पिछले दिनों काफी विवादों में रहा। जर्मनी के टैक्स अधिकारियों ने एक सूचना मिलने पर इस बैंक में जमा कई लोगों के खातों की जांच की और टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की। इस बैंक में जर्मनी सहित दुनिया के कई देशों के नागरिकों की करीब 5 लाख यूरो की राशि जमा होने की बात सामने आई थी।
एलजीटी बैंक का असली नाम लिंचेस्टाइन ग्लोबल ट्रस्ट है जो यूरोप का सबसे बड़ा ट्रस्ट है। इसका पूरा स्वामित्व प्रिंस ऑफ लिंचेस्टाइन फाउंडेशन के जिम्मे है। इस ट्रस्ट में करीब 1900 कर्मचारी है जो यूरोप, एशिया, मध्य पूर्व और अमेरिका में 29 से अधिक दफ्तरों में कार्यरत हैं।
manojjaiswalpbt@gmail.com
0 कमेंट्स “ ”पर