

महंगाई की स्थिति कम से कम छह महीने तक खास सुधरने वाली नहीं है, इसलिए ब्याज दरों में कम से कम एक और बढ़ोतरी का अंदेशा जानकार लगा रहे हैं। गिरते विकास से जूझते उद्योग और व्यापार क्षेत्र भी लगातार बढ़ती ब्याज दरों से खुश नहीं हैं। पिछले वर्षों में जमीन, बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार को लेकर भी कोई बड़े फैसले नहीं हुए हैं, इससे भी औद्योगिक विकास थमा है। इसका अर्थ यह है कि भारत में उदारीकरण के बाद जिन वर्गों यानी उद्योगपतियों और मध्यम वर्ग को विकास का नेतृत्व करना था, वे दोनों ही असंतुष्ट हैं। महंगाई की मार मध्यम वर्ग तो किसी तरह बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन गरीबों के लिए यह ज्यादा बड़ा सवाल है। विकास दर घटने का सीधा अर्थ रोजगारों में कमी और गरीबों के लिए अपना जीवनस्तर उठाने के अवसर सीमित हो जाना है, इसलिए हम यह भी नहीं कह सकते कि सरकारी नीतियों से गरीबों को लाभ हो रहा है। नरेगा जैसी योजनाओं का फायदा बेशक हुआ है, लेकिन उससे आगे बढने के अवसर तो बुनियादी ढांचे में सुधार और ठोस रोजगार से ही हासिल हो सकते हैं। मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था चलाना कोई हंसी खेल नहीं है, लेकिन यही वक्त है, जब सरकार कुछ साहसिक और कल्पनाशील फैसले करे, जिससे जनता का भरोसा बहाल हो और उसे राहत भी मिले।
सही लिखा गुरु
ReplyDeleteयह सरकार जो ना करे वही अच्छा है सुन्दर लेख के लिए साधुबाद मनोज जी
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