हाय महँगाई मार गयी !

View Image in New Window मनोज  जैसवाल :  पिछले दिनों में भारतीय मध्यवर्ग को दो बड़े झटके लगे। एक दिन पेट्रोल की कीमतें लगभग तीन रुपये प्रति लीटर बढ़ गईं और अगले दिन रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें 0.25 प्रति बढ़ा दीं। पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता मध्यम वर्ग है, जो स्कूटर या कारों का इस्तेमाल करता है। ब्याज दरों के बढ़ने से उन लोगों पर बोझ पड़ेगा, जो मकान के कर्ज की किश्तें चुका रहे हैं और उन लोगों को फिर सोचना पड़ेगा, जो मकान या वाहन खरीदने की सोच रहे हैं। पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी का तर्क यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत गिरने से पेट्रोलियम पदार्थों का आयात महंगा हुआ है। पेट्रोल के दामों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में दामों से जोड़ना एक सही तर्क तब होगा, जब अन्य पेट्रोलियम उत्पादों के दाम भी बढ़ें। केरोसिन इसलिए नहीं महंगा किया जा सकता, क्योंकि उसे गरीबों का ईंधन माना जाता है। डीजल इसलिए महंगा नहीं किया जा सकता, क्योंकि ट्रक मालिकों की लॉबी बहुत ताकतवर है और वह अपनी लागत किसी भी तरह बढ़ने का जोरदार विरोध करती है। पेट्रोल का उपभोक्ता वर्ग असंगठित और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली नहीं है, इसलिए सिर्फ उसी पर मार पड़े, यह कुछ अन्यायपूर्ण लगता है। जाहिर है, अनियंत्रित महंगाई के आंकड़ों पर भी पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी का असर पड़ेगा और मध्यम वर्ग का वह असंतोष भी बढ़ेगा, जो कि अन्ना हजारे के आंदोलन में दिखाई पड़ा था। बची-खुची कसर कर्जों की ईएमआई में बढ़ोतरी पूरी कर देगी। रिजर्व बैंक ने इस कदम से साफ कर दिया है कि उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण महंगाई को रोकना है, भले ही इस कोशिश में विकास की थोड़ी कुर्बानी देनी पड़े। पिछले लगभग सवा साल में रिजर्व बैंक ने बारह बार ब्याज दरें बढ़ाई हैं। इसका कुछ असर महंगाई पर पड़ता नहीं दिख रहा है, जो फिलहाल नौ प्रतिशत से ऊपर ही चल रही है, हालांकि पिछले महीनों के आंकड़े बताते हैं कि विकास दर पर इसका असर पड़ने लगा है। जुलाई में औद्योगिक विकास दर 3.3 प्रतिशत तक आ गई है, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है। अगस्त में उद्योगों व सेवा क्षेत्र दोनों का विकास पिछले दो वर्षों में सबसे कम रिकॉर्ड किया गया। इसकी वजह सिर्फ घरेलू नहीं है, विश्व अर्थव्यवस्था भी जिम्मेदार है, बल्कि कठोर मौद्रिक नीति का भी इसमें योगदान है।
महंगाई की स्थिति कम से कम छह महीने तक खास सुधरने वाली नहीं है, इसलिए ब्याज दरों में कम से कम एक और बढ़ोतरी का अंदेशा जानकार लगा रहे हैं। गिरते विकास से जूझते उद्योग और व्यापार क्षेत्र भी लगातार बढ़ती ब्याज दरों से खुश नहीं हैं। पिछले वर्षों में जमीन, बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार को लेकर भी कोई बड़े फैसले नहीं हुए हैं, इससे भी औद्योगिक विकास थमा है। इसका अर्थ यह है कि भारत में उदारीकरण के बाद जिन वर्गों यानी उद्योगपतियों और मध्यम वर्ग को विकास का नेतृत्व करना था, वे दोनों ही असंतुष्ट हैं। महंगाई की मार मध्यम वर्ग तो किसी तरह बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन गरीबों के लिए यह ज्यादा बड़ा सवाल है। विकास दर घटने का सीधा अर्थ रोजगारों में कमी और गरीबों के लिए अपना जीवनस्तर उठाने के अवसर सीमित हो जाना है, इसलिए हम यह भी नहीं कह सकते कि सरकारी नीतियों से गरीबों को लाभ हो रहा है। नरेगा जैसी योजनाओं का फायदा बेशक हुआ है, लेकिन उससे आगे बढने के अवसर तो बुनियादी ढांचे में सुधार और ठोस रोजगार से ही हासिल हो सकते हैं। मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था चलाना कोई हंसी खेल नहीं है, लेकिन यही वक्त है, जब सरकार कुछ साहसिक और कल्पनाशील फैसले करे, जिससे जनता का भरोसा बहाल हो और उसे राहत भी मिले।
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3 कमेंट्स “हाय महँगाई मार गयी !”पर

  1. हाय महँगाई मार गयी !

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  2. सही लिखा गुरु

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  3. यह सरकार जो ना करे वही अच्छा है सुन्दर लेख के लिए साधुबाद मनोज जी

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